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स्वादिष्ट भोजन देखने पर मुँह में पानी क्यो आता है ?

स्वादिष्ट भोजन देखने पर मुँह में पानी क्यो आता है ?

लोकेश चौधरी , हिसार
हम तरह-तरह के भोजन खाते हैं जिन्हें उसी भोजन नली से गुजरना होता है। प्राकृतिक रूप से भोजन को एक प्रक्रम से गुजरना होता है। जिससे वह उसी प्रकार के छोटे-छोटे कणों में बदल जाता है । इसे हम दातों से चबाकर पूरा कर लेते हैं। क्योंकि आहार का स्तर बहुत कोमल होता है ।अतः भोजन को गिला किया जाता है ताकि उसका मार्ग आसान किया जाए। जब आप अपनी पसंद का कोई पदार्थ खाते हैं तो हमारे मुंह में पानी आ जाता है यह वास्तव में केवल जल रही है या लाला ग्रंथि से निकलने वाला एक रस होता है जिसे लालारस या लार कहा जाता है ।

इस भोजन को हम खाते हैं उसका दूसरा पहलू उसकी जटिल रचना है यदि इसका अवशोषण आहार नाल द्वारा करना है तो इसे छोटे अंगों में खंडित करना होगा । यह काम जैव उत्प्रेरक द्वारा किया जाता है जिन्हें हम साधारण भाषा के अंदर एंजाइम कहते हैं । लार में भी एक एंजाइम होता है जिसे हम लार एमिलेज कहते हैं यह मंड जटिल अनु को सरल शर्करा में खंडित कर देता है। भोजन को चबाने के दौरान पेशीय जीवह्य भोजन को लार के साथ पूरी तरह मिला देती है।
आहार नली के हर भाग में भोजन की नियमित रूप से गति उसके सही ढंग से प्रकर्मित होने के लिए आवश्यक है । यह कर्माकुंचक गति पूरे भोजन नली में होती है। मुंह से आमाशय तक भोजन ग्रसिका या इसोफेगस द्वारा ले जाया जाता है। आमाशय एक बड़ा अंग है जो भोजन के आने पर फैल जाता है आवश्य की पेशीए भित्ति भोजन को अन्य पाचक रसों के साथ मिश्रित करने में सहायक होती है ।
यह पाचन कार्य आमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंथियों के द्वारा संपन्न होते हैं। यह हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक प्रोटीन पाचक एंजाइम पेप्सिन तथा श्लेष्मा का स्त्रावण करते हैं। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक अम्लीय माध्यम तैयार करता है जो पेप्सिन एंजाइम की क्रिया में सहायक होता है ।आपके विचार में अमन और कौन सा कार्य करता है ? सामान्य परिस्थिति के अंदर श्लेष्मा आमाशय के आंतरिक आसतर की अम्ल से रक्षा करता है। हमने बहुधा वयस्को को एसिडिटी अथवा अम्लता की शिकायत करते सुना है । क्या इसका संबंध उपरोक्त वर्णित विषय से तो नहीं है?

■ क्षुद्रांत्र की लंबाई इसका स्तर

आमाशय से भोजन अब क्षुद्रांत्र में प्रवेश करता है । यह अवरोधिनी पेशी द्वारा नियंत्रित होता है । क्षुद्रांत्र आहार नाल का सबसे लंबा भाग है । अत्यधिक कुंडलित होने के कारण यह सहत स्थान में अवस्थित होती है । विभिन्न जंतुओं में क्षुद्रांत्र की लंबाई उनके भोजन के प्रकार के अनुसार अलग-अलग होती है । घास खाने वाले शाकाहारी का सैलूलोज पचाने के लिए लम्बी क्षुद्रांत्र की आवश्यकता होती है । माँस का पाचन सरल है अतः बाघ जैसे मांसाहारी की क्षुद्रांत्र छोटी होती है।

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