किन आधारों पर एक पत्नी अपने पति से अलग रहकर उससे भरण पोषण की मांग कर सकती है ?
हिन्दू समाज एवं संस्क्रति में पत्नी का भरण पोषण करना पति का कर्तव्य माना गया है। उसका यह कर्तव्य केवल विधिक ही नही बल्कि नैतिक भी है।
सो अपकार्य करके भी प्रत्येक व्यक्ति को अपने वर्ध माता पिता साध्वी पत्नी एवं अवयस्क बच्चो का भरण पोषण करना चाहिए।
भरण पोषण अधिनियम , 1956 की धारा 18 में भी इसी व्यवस्था को स्थान दिया गया है। धारा 18 (1) में यह प्रावधान किया गया है कि पत्नी चाहे वह इस अधिनियम के शुरू के पूर्व या बाद।विवाहित हो अपने जीवनकाल में अपने।पति से भरण पोषण की हकदार होगी।
Case 1 】 जयंती बनाम अलामेलु ( 1904 27 मद्रास 45 ) के मामले में यह कहा गया कि पत्नी का भरण पोषण करना पति का कर्तव्य है। पति का यह कहकर अपने इस दायित्व से बच नही सकता कि उसकी आर्थिक अवस्था ठीक नही है । पत्नी का भरण पोषण का कर्तव्य पति का व्यकिगत है।
भरणपोषण के अधिकार को विवाह विच्छेद के करार के माध्यम से समाप्त नही किया जा सकता है। और न ही भूतलक्षी प्रभाव से लागू किया जा सकता है।
पत्नी अपने पति से भरण पोषण की हकदार तब नही रह जाती है जब वह बिना किसी कारण के या पति की अनुमति के बिना पति का घर छोड़कर चली जाए। 【 FIR 1958 , आंध्रप्रदेश 582 】
सामान्य नियम यह है कि पत्नी अपने पति के साथ रहकर ही भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार होती है। अपने पति से अलग रहकर वह भरण पोषण प्राप्त नही कर सकती है। लेकिन इसके कुछ अपवाद भी है।
◆ जब पति युक्ति कारण के बिना या पत्नी की सम्पति के बिना या पत्नी की इच्छा के बिना उसका परित्याग करने अथवा जान बूझकर उसकी उपेक्षा करने का दोषी हो।
◆ जब पति द्वारा पत्नी के साथ ऐसी कुररता का व्यवहार किया जाए जिससे उसके मन मे इस बात की युक्ति युक्त आशंका पैदा हो जाये कि उसका पति के साथ रहना बिल्कुल क्षतिकारक है।
◆ जब पति उग्र रोग से पीड़ित हो।
◆ जब पति की कोई अन्य पत्नी जीवित हो।
◆ जब पति उसी ग्रह में जिसमे उसकी पत्नी निवास करती है। कोई उपपत्नी रखता हो या उप पत्नी के साथ अन्य किसी स्थान में निवास करता हो।
उदहारण के तौर पर पति का कर्तव्य है कि वह पत्नी की सुख सुविधा का ध्यान रखे। यदि पति की माता द्वारा पत्नी के साथ कुररता पूर्ण व्यवहार करती है और पति द्वारा ध्यान नही दिया जाता है तो पत्नी इस आधार पर अपने पति से अलग रहकर भरण पोषण की मांग कर सकती है।
■ नवल किशोर बनाम श्रीमती गुलाब के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि जहां पति द्वारा पत्नी को अलग रहने के लिए बलपूर्वक बाध्य किया गया हो , वहां पत्नी अपने पति से अलग रहते हुए भी धारा 18 के अंतर्गत भरणपोषण की हकदार होगी।
■ भरण पोषण के अधिकार का समापन
1) अधिनियम की धारा 18(1) के अंतर्गत पत्नी का भरण पोषण का अधिकार धारा 18(3) में वर्णित निम्ननिखित अवस्था मे समाप्त हो जाता है।
◆ जब पत्नी असती हो जाए।
◆ जब पत्नी धर्म सपरिवर्तन द्वारा हिन्दू नही रह जाए।
◆ जब वह पति के साथ पुनः दाम्पत्य जीवनयापन करने लग जाए।
उपरोक्त दशाओं में पत्नी अपने भरण पोषण का अधिकार खो देती है।
■ शुन्य विवाह में भरण पोषण का अधिकार
कई बार हमारे सामने यही सवाल उठता है कि इसमे हकदार होगी या नही होगी । जहाँ तक शून्य विवाह का सवाल है सामान्य धारणा यह है कि पत्नी भरण पोषण पाने की हकदार नही होती है। क्योकि ऐसे विवाह में स्त्री को पत्नी की हैसियत प्राप्त नही होती है।