आखिर गान्धर्व विवाह क्या होता है ?
गान्धर्व विवाह , विवाह का ही एक स्वरूप है। इसे प्रेम विवाह भी कहा जाता है। विवेक सर के अनुसार जब कोई लड़की अपने प्रेमी के साथ अपनी इच्छा से समागम करती है एवं विवाह के सूत्र में बंध जाती है , तो वह गान्धर्व विवाह कहलाता है।
■ इसके नियम
1) एक प्रेम विवाह होता है।
2) इसमे लड़का एवं लड़की अपनी इच्छा से विवाह के सूत्र में बंध जाते है।
3) लड़की के पिता द्वारा कन्यादान किया जाना आवश्यक नही होता है।
4) इसका उद्देश्य स्वतंत्र समागम होता है।
प्रश्न 2. अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह क्या होते है ?
अनुलोम विवाह एवं प्रतिलोम विवाह अंतरजातीय विवाह के स्वरूप माने जाते है। जब कोई उच्च वर्ण या फिर कोई पुरुष नीचे वर्ण की लड़की से विवाह कर लेता है तो उसे अनुमोल विवाह कहा जाता है।
Example :- ब्राम्हण पुरुष का शुद्र कन्या से किया जाने वाला विवाह अनुलोम विवाह माना जाएगा।
जबकि किसी निम्न वर्ण के पुरुष या उच्च वर्ण की कन्या से किया गया विवाह प्रतिलोम विवाह कहा जाएगा ।
Example : किसी शुद्र पुरुष का ब्रामण या वेश्या कन्या से साथ किया जाने वाला विवाह प्रतिलोम विवाह माना जाता है।
हमारे धर्मशास्त्रों में केवल अनुलोम विवाह को ही मान्यता प्रदान किया गया है। लेकिन आर्य विवाह विधिमंयकरन अधिनियम 1937 , हिन्दू विवाह मान्यकरण अधिनियम 1949 , हिन्दू ( अयोग्यता निवारण ) अधिनियम 1949 तथा हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत दोनो प्रकार के विवाहों को मान्यता प्रदान की गई है।
प्रश्न 3. मानसिक नपुंसकता क्या होती है ??
नपुंसकता न्यायायिक पृथक्करण का एक आधार है – शारिरिक एवं मानसिक नपुंसकता। एक मामले में कहा गया है कि किसी पक्षकार का शारिरिक या मानसिक अवस्था के कारण सम्भोग करने में अक्षम होना नपुंसकता है।
जगदीश बनाम सीता देवी के मामले में न्यायालय ने कहा – नैतिक या मानसिक कारणो से मैथुन के लिए इतनी विरक्ति हो जाना कि शारीरिक रूप से समर्थ होते हुए भी मैथुन करने में असमर्थता हो तो इसे मानसिक नपुंसकता कहा जाएगा।
सवर्ण बनाम आचार्य के मामले में पति या पत्नी के प्रति सम्भोग की इच्छा न होने को मानसिक नपुंसकता माना गया है। जब कोई व्यकित अन्य किसी स्त्री के साथ सम्भोग करने में सक्षम हो लेकिन अपनी पत्नी के साथ नही तो इसका कारण मानसिक नपुंसकता माना जाएगा।