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भारत का ऐसा कौन सा राज्य है जहाँ महिलाओं को छाती / स्तन ढकने के लिए टैक्स देना पड़ता है।

भारत का ऐसा कौन सा राज्य है जहाँ महिलाओं को छाती / स्तन ढकने के लिए टैक्स देना पड़ता है।

आज हम बहुत ही आवश्यक बात करेंगे।सर्वप्रथम इस प्रथा का चलन नीची जाति की महिलाओं के लिए किया गया था। 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में ये प्रथा लागू हुई। ये कोई प्रथा नही बल्कि एक कानून भी था। यदि कोई महिला अपनी छाती ढकती थी तो उसे जेल में बन्द कर दिया जाता था। ते कुप्रथा 125 वर्षों तक ऐसे ही चलती रही। यहाँ कोई भी महिला अपने स्तन नही ढक सकती थी।

केरल राज्य के नीची जाति की महिलाओं के सामने यदि कोई ब्राम्हण आ जाता था तो उन महिलाओं को अपनी छाती पर से कपड़े हटाने होते थे। जब कोई महिला अपने कपड़े नही हटाती थी तो उसे उस आए ब्राम्हण को इस एवज में टैक्स देना पड़ता था। सबसे बड़ी बात तो ये थी कि जहाँ भी सार्वजनिक स्थल होते थे वहाँ महिलाओं को इस कानून की पालना करनी पड़ती थी। लेकिन धीरे धीरे समय के साथ जब इस कानून का घोर विरोध हुआ तो अंग्रेजो को इस कानून को बाद में हटाना पड़ा।

चेन्नई का पहला अंग्रेजी अखबार लांच करने वाली मद्रास कुरियर की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल के अंदर निचली जाति की महिलाओं के लिए बहुत कठिन नियम बनाए गए थे। सबसे बड़ी बात ये थी कि महिला अगर अपनी छाती को ढंकती थीं तो उनके स्तन के आकार पर टैक्स भरना होता था। इस रिपोर्ट के मुताबिक, ये टैक्स त्रावणकोर के राजा के दिमाग की उपज थी , जिसे उसने अपने सलाहकारों के कहने पर सख्ती के साथ लागू किया था।

■ जब महिला ने विरोध किया तो क्या हस्र हुआ उसका
अभी BBC में कुछ समय पहले ही पोस्ट हुआ था आपने देखा हो तो इस प्रथा के खिलाफ एक नांगेली नाम की नीची जाति की महिला ने विरोध किया , बाद में उस महिला के स्तन काट दिए गए। फिर उसकी दर्दनाक मौत हो गयी।

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इस महिला की मौत ने नीची जाति के साथ साथ सभी महिलाओं को एक कर दिया। उसकी मौत के बाद सभी महिलाओं ने इस प्रथा घोर विरोध किया। इन महिलाओं के अंदर कुछ महिलाएं ईसाई भी थी। बाद में अंग्रेजो ने इस प्रथा को बिल्कुल बन्द करना पड़ा।

■ विरोध करने पर हुए हमले
इस प्रथा का जो जो विरोध कर रहे थे उन्हें हमले से उड़ा दिया गया। कुछ लोग इस अपमानजनक प्रथा से तंग आकर श्रीलंका चले गए थे। जब अंग्रेज आए तो इन लोगो ने अपना धर्म बदल लिया था।

■ 125 वर्षों तक चलती रही प्रथा।
ये अपमानजनक प्रथा 125 वर्षों तक महिलाओं का खून। खोलती रही। कोई महिला कुछ भी करके कुछ नही कर पाती थी। बहुत सी महिलाओं ने तो सुसाइड ही करना शुरू कर दिया था। सभी व्यक्ति इस प्रथा से तंग आकर सभी एक दूसरे देशों में चले गए थे। सबसे बड़ी बात तो ये थी कि यहाँ त्रावणकोर की रानी भी इस प्रथा को सही नही मानती थी। वो भी इन प्रथा से तंग थी। बाद में अंग्रेज़ गवर्नर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने वर्ष 1859 में इसे खत्म करने का आदेश जरूर दिया, लेकिन इसके बाद भी ये जारी रहा।

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