महात्मा गांधी ने खादी बुनने पर ही बल क्यो दिया ?
प्राचीन भारत में सूती वस्त्र हाथ से कताई और हथकरघा बुनाई तकनीकों से बनाए जाते थे । 18 वीं शताब्दी के बाद विद्युत करघों का उपयोग होने लगा । औपनिवेशिक काल के दौरान हमारे परंपरागत उद्योगों को बहुत हानि हुई क्योंकि हमारे उद्योग इंग्लैंड के मशीन निर्मित वस्तुओं से स्पर्धा नहीं कर पाए।
■ सर्वप्रथम सूती वस्त्र उद्योग 1854 में मुंबई के अंदर लगाया गया था।
■ यूरोप दो विश्व युद्ध से जूझ रहा था तथा इंग्लैंड के अधीन था। ऐसे में इंग्लैंड में कपड़े की माँग आपूर्ति हेतु भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को प्रोत्साहन मिला।
नवंबर 2011 तक देश में लगभग 1946 सूची तथा कृत्रिम रेशे की कपड़ा मिली थी। इनमें से 80% निजी क्षेत्र में तथा शेष सार्वजनिक व सहकारी क्षेत्र में है । इसके अंतर्गत कई हजार छोटी इकाइयां हैं जिनमें 4 से 10 हथकरघे हैं। आरंभिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र तथा गुजरात के कपास उत्पादन क्षेत्रों तक ही सीमित थे। कपास की उपलब्धता बाजार परिवर्तनों नमीयुक्त जलवायु आदि कारकों ने इसके स्थानीयकरण को बढ़ावा दिया । इस उद्योग का कृषि से निकट निकट का संबंध है और कृषको को कपास चुनने वालो , गांठ बनाने वालों , कताई करने वालों और रंगाई करने वालों डिजाइन बनाने वालो , पैकेट बनाने वालों और सिलाई करने वालों को यह जीविका प्रदान करता है । इस उद्योग के कारण रसायन रंजक मिल स्टोर पैकेजिंग सामग्री इंजीनियरिंग उद्योग की बढ़ती है। इन उद्योगों का विकास होता है ।
यद्यपि कई कार्य महाराष्ट्र गुजरात तथा तमिलनाडु में केंद्रित है । लेकिन सूती रेशम जरी कशीदाकारी आदि बुनाई के परंपरागत कौशल और डिजाइन देने के लिए बुनाई अत्यधिक विकेंद्रीकृत है । भारत में कताई उत्पादन विश्व स्तर का है लेकिन बुना वस्त्र कब गुणवत्ता वाला है। क्योंकि यह देश में उत्पादित उच्च स्तरीय धागे का अधिक उपयोग नहीं कर पाता। बुनाई का कार्य हथकरघों विद्युतकरघों व मिलो में ही होता है । हाथ से बुनी खादी कुटीर उद्योग के रूप में बुनकरों को उनके घरों में बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान करता है।
भारत जापान को सूत का निर्यात करता है। भारत में बने सूती वस्त्र के अन्य आयातक देश संयुक्त राज्य अमेरिका , इंग्लैंड , रूस , फ्रॉस, पूर्वी यूरोपीय देश , नेपाल , सिंगापुर श्रीलंका तथा अफ्रीका के देश है।
तकुओ की क्षमता के रूप में भारत को विश्व मे दूसरा स्थान प्राप्त है। इसमे चीन का प्रथम स्थान है।
◆ धागा 85 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जाता है। अगर यह पतलून के रूप में बेचा जाए तो इसकी कीमत 800 रुपये प्रति किलोग्राम होगी।
◆ पहला पटसन उद्योग कोलकाता के निकट रिशरा में 1855 में लगाया गया। 1947 में देश के विभाजन के बाद पटसन मिले तो भारत में रह गई , लेकिन तीन चौथाई जूट उत्पादक क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान और बांग्लादेश में चले गए।।