हमे संसद की आवश्यकता क्यो होती है ?
प्रत्येक लोकतंत्र में जनता द्वारा निर्वाचित की गई प्रतिनिधियों की सभा जनता की ओर से सर्वोच्च राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करती है। भारत के अंदर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की राष्ट्रीय सभा को संसद कहा जाता है। राज्य स्तर पर इसे विधानसभा भी कहा जाता है विभिन्न देशों में इन सभाओं के नाम अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन हर लोकतंत्र के अंदर प्रतिनिधियों की सभा जनता द्वारा ही निर्वाचित होती है।
> हर देश में कानून बनाने का सर्वोच्च अधिकार संसद को ही होता है कानून बनाने या फिर विधि निर्माण करने वाले इन सभाओं को विधायिका का कहते हैं। दुनिया के सभी देशों की संसद है नए कानून बना सकती हैं या फिर जो कानून पहले बन चुके हैं उनमें किसी प्रकार का संशोधन भी कर सकती है या फिर उनके स्थान पर नए कानून भी तैयार कर सकती है।
> दुनिया भर के विभिन्न देशों में सरकार चलाने वालों को नियंत्रित करने के लिए संसद कुछ अधिकारों का प्रयोग भी कर सकती है । भारत जैसे देश के अंदर संसद का सीधा और पूर्ण नियंत्रण स्थापित है। संसद का पूर्ण समर्थन मिलने की स्थिति में सरकार चलाने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसले ले सकते हैं।
> सरकार की सारी संपत्ति पर संसद का ही नियंत्रण होता है , ज्यादातर देखा होगा लोकतांत्रिक देशों के अंदर संसद की मंजूरी मिलने के बाद ही सार्वजनिक पैसे का खर्च किया जाता है।
> सार्वजनिक मुद्दों और किसी देश की राष्ट्रीय नीति पर चर्चा और बहस करने के लिए संसद ही सर्वोच्च संस्था होती है। यह बात आप सब को भी पता होगी संसद किसी भी मामले में सरकार से सूचना मांग सकते हैं।
■ संसद के सदन
आधुनिक लोकतंत्र में संसद बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसलिए ज्यादातर बड़े देशों ने संसद की भूमिका और उनके अधिकारों को दो अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया है। इन्हें चेंबर या सदन कहा जाता है। पहले सदन के सदस्य सीधे जनता द्वारा ही चुने जाते हैं जो जनता की ओर से अधिकारों का प्रयोग भी करते हैं। यही हमारे दूसरे सदन के सदस्यों का जो चुनाव होता है वह परोक्ष रूप से किया जाता है , और भी कुछ विशेष काम करते हैं इस दूसरे सदन का काम विभिन्न राज्यों क्षेत्रों और संघीय इकाइयों के हितों की सुरक्षा करना होता है।
भारत में संसद के दो सदन है और दोनों सदनों में एक का नाम लोकसभा जिसको हम हाउस ऑफ पीपल भी कहते हैं दूसरे को कहते हैं राज्यसभा हाउस स्टेटस भारत का राष्ट्रपति भी संसद का ही एक हिस्सा होता है हालांकि वह दोनों में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता इसी कारण संसद के फैसले राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ही लागू होते हैं।